राजस्थान में बिजली के स्मार्ट मीटर को लेकर चल रहा विवाद अब एक नए मोड़ पर आ गया है। भारी सार्वजनिक विरोध और राजनीतिक दबाव के सामने झुकते हुए, राज्य सरकार ने स्मार्ट मीटर लगाने की अपनी योजना पर यू-टर्न ले लिया है। ऊर्जा विभाग के डिस्कॉम ने एक संशोधित आदेश जारी किया है, जिसने स्मार्ट मीटर लगाने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। यह फैसला आम जनता के लिए एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है, जो पिछले कुछ समय से बढ़े हुए बिजली बिलों से परेशान थी।
आखिर क्यों झुकी सरकार?
स्मार्ट मीटर योजना की शुरुआत से ही प्रदेश के कई हिस्सों में इसका पुरजोर विरोध हो रहा था। ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों के उपभोक्ताओं ने शिकायत की थी कि जब से उनके घरों में स्मार्ट मीटर लगे हैं, उनके बिजली के बिल दोगुने से तिगुने हो गए हैं, जबकि उनकी बिजली की खपत में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है।
इस मुद्दे को लेकर कई जगहों पर बिजली कंपनी के कर्मचारियों और स्थानीय लोगों के बीच तीखी झड़पें भी हुईं। मामले ने तब और तूल पकड़ लिया जब कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने इसे सरकार के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बना दिया। पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक अशोक चांदना ने तो खुले तौर पर अपनी विधानसभा में अधिकारियों को चेतावनी दी और लोगों से कहा कि वे अपने गांवों में स्मार्ट मीटर न लगने दें। 1 सितंबर से शुरू होने वाले विधानसभा के मानसून सत्र को देखते हुए सरकार किसी भी तरह के बड़े आंदोलन से बचना चाहती थी, जिसके चलते यह फैसला लेना पड़ा।
क्या है डिस्कॉम का नया आदेश?
बढ़ते विरोध को शांत करने के लिए, डिस्कॉम की अध्यक्ष आरती डोगरा ने संशोधित आदेश जारी किए हैं। इन नए आदेशों के अनुसार:
- अब केवल उन्हीं फीडरों पर नए कनेक्शन के लिए स्मार्ट मीटर लगाए जाएंगे, जहां स्मार्ट मीटर लगाने का काम पहले से चल रहा है या पूरा हो चुका है।
- बाकी सभी क्षेत्रों और फीडरों पर, जहां अभी काम शुरू नहीं हुआ है, संबंधित डिस्कॉम पुराने पारंपरिक (नॉन-स्मार्ट) मीटर ही लगाएगा।
यह पुराने प्रावधान के ठीक विपरीत है, जिसमें कहा गया था कि सभी उपखंडों में नए कनेक्शन केवल स्मार्ट मीटर के साथ ही जारी किए जाएंगे। इस नए फैसले ने फिलहाल के लिए स्मार्ट मीटर की अनिवार्यता को प्रभावी रूप से खत्म कर दिया है।
स्मार्ट मीटर क्या है और क्यों था इतना विरोध?
स्मार्ट मीटर एक डिजिटल उपकरण है जो बिजली की खपत को वास्तविक समय (real time) में रिकॉर्ड करता है। यह सारी जानकारी स्वचालित रूप से बिजली कंपनी (डिस्कॉम) के सर्वर पर भेज देता है। इसमें प्रीपेड रिचार्ज जैसी सुविधाएँ भी होती हैं और उपभोक्ता अपने मोबाइल पर अपनी खपत की जानकारी देख सकता है।
लेकिन विरोध का मुख्य कारण इसकी तकनीक नहीं, बल्कि इसके परिणाम थे। लोगों का सबसे बड़ा आरोप यह था कि ये मीटर बहुत तेज चलते हैं और गलत रीडिंग दिखाते हैं, जिससे आम आदमी की जेब पर अनावश्यक बोझ पड़ रहा है।
विपक्ष का आरोप: निजी कंपनियों को फायदा पहुँचाने की साज़िश
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि स्मार्ट मीटर परियोजना कुछ चुनिंदा निजी कंपनियों को फायदा पहुँचाने के लिए लागू की गई थी। उनका दावा है कि इन मीटरों की वजह से आम उपभोक्ताओं पर भारी-भरकम बिजली बिलों का बोझ डाला जा रहा था, जबकि इसका असली मकसद निजी सेवा प्रदाताओं (AMISP) को लाभ पहुँचाना था। यह फैसला सरकार के लिए एक झटका है, लेकिन जनता के लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही है।