गणेश चतुर्थी की शुरुआत घरों और सार्वजनिक स्थानों पर गणेश प्रतिमाओं की स्थापना से होती है। इस अनुष्ठान को “गणेश स्थापना” के नाम से जाना जाता है, जिसमें मूर्ति को सावधानीपूर्वक सजाए गए आसन पर रखा जाता है, उसके बाद प्रार्थना और प्रसाद चढ़ाया जाता है। यह कार्य भगवान गणेश को भक्तों के जीवन में आमंत्रित करने, आने वाले दिनों के लिए उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त करने का प्रतीक है।
दैनिक पूजा और प्रसाद
पूरे त्यौहार के दौरान, भक्त प्रतिदिन पूजा करते हैं, मूर्ति को फूल, फल और मिठाई चढ़ाते हैं। वे आरती (अनुष्ठान दीप अर्पण) जैसे अनुष्ठान भी करते हैं और गणपति अथर्वशीर्ष और गणेश अष्टाक्षर मंत्र जैसे भक्ति भजन गाते हैं। ये प्रथाएँ भगवान गणेश के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करती हैं, जो भक्तों के जीवन में त्यौहार के महत्व को दर्शाती हैं।
खुशहाल जुलूस और सामुदायिक उत्सव
गणेश चतुर्थी के सार्वजनिक उत्सव की विशेषता जीवंत जुलूस हैं, जहाँ संगीत, नृत्य और जयकारों के बीच गणेश की मूर्ति को सड़कों पर घुमाया जाता है। ये जुलूस समुदायों को एक साथ लाते हैं, एकता और सामूहिक आनंद की भावना को बढ़ावा देते हैं। रंग-बिरंगी सजावट, सांस्कृतिक प्रदर्शन और सामुदायिक दावतों से उत्सव का माहौल और भी बढ़ जाता है, जो त्योहार की जीवंत भावना को दर्शाता है।
विसर्जन समारोह
यह त्योहार गणेश प्रतिमा के जल निकाय में विसर्जन (विसर्जन) के साथ समाप्त होता है। यह अनुष्ठान भगवान गणेश के अपने दिव्य निवास पर लौटने और उनकी सांसारिक यात्रा के अंत का प्रतीक है। विसर्जन श्रद्धा और उत्सव के मिश्रण के साथ किया जाता है, जो जीवन की चक्रीय प्रकृति और इस विश्वास का प्रतीक है कि देवता का आशीर्वाद हमेशा बना रहेगा।
भक्ति की अभिव्यक्ति
गणेश चतुर्थी केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि भगवान गणेश के प्रति प्रेम और श्रद्धा का उत्सव है। यह त्योहार भक्तों को विस्तृत अनुष्ठानों, कलात्मक रचनाओं और सामुदायिक गतिविधियों के माध्यम से अपनी भक्ति व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो हाथी के सिर वाले भगवान के साथ लोगों के गहरे आध्यात्मिक संबंध को दर्शाता है।